बेटे की ढाल मां दीदा
दीदा, हां इसी नाम से बुलाते थे ,हम राधा दीदी को। मोहल्ले के सभी बच्चों की दीदा थी वह।
दुनिया का सबसे बड़ा काम करती हूं मैं ,ऐसा कह कर ,घर के कामों से बचने की हर संभव कोशिश करती रहती थी। भाभी भी दीदा की मां से कहती ,बीवी जी ,बच्चों को संभालना भी बहुत बड़ा काम है ,दीदा को वही काम करने दो ।
दीदा घर के छोटे से लेकर बड़े बच्चों के साथ रहकर कभी बच्चा बन जाती ,कभी बड़े होकर बच्चों के खाना खाने तक की फिक्र करती ,कभी सभी बच्चों को पहाड़े रटाने बैठ जाती ,तो सारे बच्चे जोर-जोर से पहाड़े बोलते ।
सभी बच्चों के साथ एक कर इक्कड़ दुक्कड़ खेल खेलती, तो कभी रस्सी कूदने में सब बच्चों के साथ अपनी बारी का इंतजार करना ,मतलब जी भर के उधम कटता। पूरे मोहल्ले के बच्चे दीदा के घर के आंगन में इकट्ठे होते। दीदा के घर का आंगन बच्चों से हमेशा गुलजार रहता। बच्चों का शोर आसपास के लोगों को भी कभी परेशान ना करता ,पर अगर घर में शांति से बच्चे बैठ जाए तो जरूर कोई पड़ोसी आ जाते पूछते सब ठीक-ठाक तो है ,आज बच्चों की आवाज नहीं सुनाई दी ।
भाभी अपने मायके बच्चों के साथ जाती तो ,बच्चों का दीदा बिना मन ही ना लगता ,और इधर बच्चों बिना दीदा का भी निर्जला व्रत शुरू हो जाता।
दो दिन में ही भाभियों को अपने बच्चों को लेकर वापस आना पड़ता। एक दो बार ऐसा हुआ तो आगे से भाभी बच्चों को दीदा के पास छोड़कर जाती ।
भाइयों की लाडली दीदा से मां कहती ,कुछ घर का काम भी सीख ले ,पराए घर जाना है नाक कटवाई की क्या ।तभी कोई पीछे से भाई बोल पड़ता ,अपनी बहन को मैं नौकर चाकर वाले घर में भी व्याहूंगा, कोई जरूरत नहीं है दीदा मस्त रहें ,कल बाजार जाऊंगा जिसको जो चाहिए, आज से ही सोच लेना ,।
बातों बातों में दीदा कब बड़ी हो गई ,उनकी सगाई हो गई पता ही ना चला ।
दिन बीते जा रहे थे और एक दिन धूमधाम से उनका दूल्हा बारात सहित आकर रस्मो रिवाज के साथ दीदा को दुल्हन बनाकर अपने साथ ले गया ।
दीदा के ससुराल जाते ही, अब बच्चे भी कुछ कुछ समझदार हो बड़े होने लगे।
दीदा को समय लगा अपने घर के दूर दूसरे घर में रहकर पीहर का आंगन बहुत याद आता।
शादी के दो साल बाद दीदा की गोद में उनका राजकुमार खेलने आ गया। दीदा मां बन चुकी थी ,दीदा को अपने बचपन में अपने बेटे के साथ लौटना बहुत अच्छा लगा। अपने बेटे को लेकर एक बार वह अपने मायके आ रही थीं अपने पूरे परिवार के साथ ।
ट्रेन में बहुत ज्यादा भीड़ होने के कारण धक्का-मुक्की में ट्रेन में चढ़ते हुए ,उनका पैर फिसल गया और वह पटरियों और प्लेट फॉर्म के बीच में जो एक फुट की जगह होती है उसमें गोदी में लिए हुए बच्चे के साथ जा पड़ी ,चलती ट्रेन को रोक पाना आसान ना था ।
पूरी ट्रेन गुजर गई और दीदा ,अपनी गोद में अपने लाड़ले को लिए सिमटी हुई पड़ी रही ।
ट्रेन ऊपर से गुजर रही थी और दीदा बेटे की ढाल बन, छाती से चिपटाय सांसो को रोके पडी रही ।और प्लेटफार्म पर खडे लोगों की सांसें रुक गई थी ।
सब को अनहोनी की संभावना थी ,पर मां दुर्गा का रूप धारण करे हुए ,दीदा अपने बेटे को चिपकाए हुए पड़ी हुई थी।दीदा बेटे की ममता में इतनी खोई हुई थी, कि उनको पता ही नहीं चला, उनके दाएं हाथ के पंजे पर से पूरी ट्रेन गुजर गई और उनकी चारों उंगलियां कट गई थी पर उस दर्द पर न ध्यान देकर ,अपने बेटे को सुरक्षित पा अप्रतिम सुख का अनुभव कर रही थी ।
हाथ की उंगलियां खोने की पीड़ा उनके चेहरे पर बिल्कुल
भी झलक नहीं रही थी ।
बेटे को सुरक्षित देखकर खुशी के आंसू लगातार बह रहे थे उनकी आंखों से।
दीदा के हाथ के दर्द को महसूस कर औरों की आंखों से
बहते आंसू रूक नहीं रहे
थे, और दीदा बेटे को सुरझित देख बेटे की ममता में दीवानी आनन्दित हो रही थी ।आज दीदा ने मां दुर्गा का
रूप धारण कर बेटे की किलकारी से सबको आनन्दित किया था ।
Niraj Pandey
17-Oct-2021 09:03 PM
बहुत खूब
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Shalini Sharma
12-Oct-2021 10:31 PM
Beautiful story
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🤫
10-Oct-2021 08:56 PM
शानदार रचना है ये...
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